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Mohammed Hussamuddin: 10 महीने में तीन मेडल जीतकर भारत का नाम किया रोशन, बोले- बेटी भाग्य लेकर आई

अनुभवी मुक्केबाज मोहम्मद हुसामुद्दीन (Mohammed Hussamuddin) को जब 2023 विश्व चैंपियनशिप के लिए चुना गया तो कई लोग हैरान थे कि वह पहली बार इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहे हैं.

Mohammed Hussamuddin: 10 महीने में तीन मेडल जीतकर भारत का नाम किया रोशन, बोले- बेटी भाग्य लेकर आई
authorPTI Bhasha
Tue, 16 May 08:14 PM

अनुभवी मुक्केबाज मोहम्मद हुसामुद्दीन (Mohammed Hussamuddin) को जब 2023 विश्व चैंपियनशिप के लिए चुना गया तो कई लोग हैरान थे कि वह पहली बार इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहे हैं. एक दशक से अधिक समय तक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में चुनौती पेश करने वाले 29 साल के हुसामुद्दीन पहले कई बार इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में हिस्सा लेने से चूक गए लेकिन इस बार उन्होंने मौके का फायदा उठाया और ताशकंद से कांस्य पदक लेकर लौटे.

 

अगर घुटने की चोट के कारण वह सेमीफाइनल मुकाबले से एक घंटे पहले प्रतियोगिता से हटने के लिए मजबूर नहीं होते तो उनके पदक का रंग बदल सकता था. पिछले 10 महीने में हुसामुद्दीन ने राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई चैंपियनशिप और विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक की हैट्रिक बनाई है और 57 किग्रा वर्ग में राष्ट्रीय खिताब भी जीता. निजामाबाद के मुक्केबाज ने अपनी सफलता का श्रेय अपनी बेटी के जन्म को दिया है.

 

'बेटी भाग्य लेकर आई'


हुसामुद्दीन ने पीटीआई से कहा, ‘मेरी बेटी का जन्म राष्ट्रमंडल खेलों से ठीक पहले हुआ था जब हम बेलफास्ट में ट्रेनिंग कर रहे थे. उस वक्त सिर्फ मुझे पता था कि वह मेरे लिए भाग्य लेकर आएगी.’ विश्व चैंपियनशिप में हुसामुद्दीन ने अपने शुरुआती तीन मुकाबले सर्वसम्मत फैसले में जीते जबकि क्वार्टर फाइनल में 4-3 से खंडित फैसले में जीत दर्ज की. हुसामुद्दीन ने कहा, ‘मैं अंतत: टूर्नामेंट के लिए चुने जाने से खुश था लेकिन मैंने यह भी महसूस किया कि मुझे पदक जीतना है. मुझे खुद को साबित करना था क्योंकि मैं पहले दो-तीन विश्व कप से चूक गया था.’

 

हुसामुद्दीन ने अपने अनुभव का पूरा फायदा उठाया और उन्हें नए विदेशी कोच दिमित्री दिमित्रुक और हाई परफोर्मेंस निदेशक बर्नार्ड ड्यून की सलाह का लाभ भी मिला. उन्होंने कहा, ‘मैं कुछ ऐसे मुक्केबाजों के खिलाफ खेला जिनसे मैं पहले भी भिड़ चुका था इसलिए मुझे उनका खेल पता था. कोच और मैंने बैठकर योजनाएं बनाईं. कोच ने मुझे 1-2 पंच (मुक्कों) पर काम करने के लिए कहा और इससे मुझे वास्तव में मदद मिली. बाईं ओर से छद्म प्रहार इनमें से एक है. मैंने छद्म प्रहार किया और फिर बाएं हाथ से मुक्का जड़ दिया.’

 

चोट के बारे में क्या बताया

 

हुसामुद्दीन को भरोसा था कि अगर चोट के कारण उनका अभियान नहीं थमता तो वह खिताब जीतते. उन्होंने कहा, ‘मेरा मुकाबला अच्छा चल रहा था लेकिन आखिरी 10 सेकेंड में जब उसने मुझे धक्का दिया तो मैंने अपना संतुलन खो दिया. मुझे उस समय पता चल गया था कि कुछ गड़बड़ है. फिजियो और डॉक्टर ने मेरी जांच की. अगले दिन जब मैं ट्रेनिंग के दौरान मुक्का मारने की कोशिश कर रहा था तो मैं खड़ा नहीं हो पा रहा था, ना ही कदम पीछे कर पा रहा था. लेकिन फिर भी हमने मैच के दिन तक इंतजार करने का फैसला किया. मैं बहुत निराश था लेकिन कोच ने मुझे समझाया कि अगर मैं खेलता हूं तो भी मैं अपना शत प्रतिशत नहीं दे पाऊंगा और इसमें चोट बढ़ने का भी जोखिम है. महत्वपूर्ण टूर्नामेंट आने वाले हैं.’

 

हुसामुद्दीन को फिजियोथेरेपी कराने की सलाह दी गई है और उन्हें उम्मीद है कि उन्हें निजामाबाद में इसे कराने की अनुमति दी जाएगी. इस छोटे से ब्रेक के बाद एशियाई खेलों की तैयारी शुरू हो जाएगी जो अगले साल होने वाले पेरिस ओलिंपिक के लिए पहला क्वालीफायर है.

 

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