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India Heartbreaks in Olympic History: जब ओलिंपिक में भारत को मिला कभी ना भरने वाला जख्म, आठ एडिशन में मेडल के करीब पहुंचकर टूटा दिल
ओलिंपिक में भारतीय खिलाड़ी कई बार बेहद करीब पहुंचकर ओलिंपिक मेडल जीतने से चूक गए. इसकी शुरुआत 1956 मेलबर्न ओलिंपिक में हुई थी और ये टोक्यो में हुए पिछले ओलिंपिक तक जारी रहा.
ओलिंपिक में जब भी कोई खिलाड़ी उतरता है तो चैंपियन बनना ही उसका सपना होता है. हर एक खिलाड़ी ओलिंपिक मेडल के लिए अपनी पूरी जान लगा देते हैं, जिसमें से चुनिंदा खिलाड़ी ही ओलिंपिक मेडल हासिल कर पाते हैं, तो हजारों खिलाड़ी टूटे दिल, निराश मन और खाली हाथ लिए लौट जाते हैं. खाली हाथ लौटने वालों में कुछ ऐसे खिलाड़ी भी शामिल होते हैं, जो मेडल के करीब पहुंचकर उससे दूर हो गए और वो अलग दर्द के साथ ओलिंपिक से लौटते हैं. चौथे स्थान पर रहने वाले खिलाड़ी को पदक चूकने की टिस रहती है. भारत भी इस जख्म को झेल चुका है. 8 ओलिंपिक में भारत मेडल के करीब पहुंचकर उससे दूर हुआ, जिसका दर्द आज भी भारत को है.
ओलिंपिक में भारतीय खिलाड़ी कई बार बेहद करीब पहुंचकर ओलिंपिक मेडल जीतने से चूक गए. इसकी शुरुआत 1956 मेलबर्न ओलिंपिक में हुई थी और ये टोक्यो में हुए पिछले ओलिंपिक तक जारी रहा.
मेलबर्न ओलिंपिक, 1956: भारतीय फुटबॉल टीम ने क्वार्टर फाइनल में मेजबान ऑस्ट्रेलिया को 4-2 से हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई थी. इस मैच में ही नेविल डिसूजा ओलिंपिक में हैट्रिक गोल करने वाले पहले एशियाई बने. नेविल ने सेमीफाइनल में यूगोस्लाविया के खिलाफ टीम को बढ़त दिलाकर अपने प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश की, लेकिन यूगोस्लाविया ने दूसरे हाफ में जोरदार वापसी करते हुए मुकाबले को अपने पक्ष में कर लिया. ब्रॉन्ज मेडल मुकाबले में भारत बुल्गारिया से 0-3 से हार गयाऋ भारत के महान खिलाड़ी पीके बनर्जी अक्सर अपनी इस पीड़ा को साझा करते थे.
रोम ओलिंपिक, 1960: महान धावक मिल्खा सिंह 400 मीटर फाइनल में मेडल के दावेदार थे, लेकिन वो सेकंड के 10वें हिस्से से ब्रॉन्ज मेडल जीतने से चूक गये. इस हार के बाद ‘फ्लाइंग सिख’ ने खेल लगभग छोड़ ही दिया था. उन्होंने इसके बाद 1962 के एशियाई खेलों में दो गोल्ड जीते, लेकिन ओलिंपिक पदक चूकने की टिस हमेशा बरकरार रही.
मॉस्को ओलिंपिक, 1980: नेदरलैंड्स, ऑस्ट्रेलिया और ग्रेट ब्रिटेन जैसे शीर्ष हॉकी देशों ने अफगानिस्तान पर तत्कालीन सोवियत संघ के आक्रमण पर मॉस्को खेलों का बहिष्कार किया था, जिस वजह से भारतीय महिला हॉकी टीम के पास अपने पहले प्रयास में ही पदक जीतने का बड़ा मौका था. टीम को हालांकि पदक से चूकने की निराशा का सामना करना पड़ा. टीम अपने आखिरी मैच में सोवियत संघ से 1-3 से हारकर चौथे स्थान पर रही.
लॉस एंजिलिस ओलिंपिक, 1984: लॉस एंजिलिस ओलिंपिक ने पीटी उषा 400 मीटर बाधा दौड़ में सेकंड के 100वें हिस्से से ब्रॉन्ज से चूक गईं. जिससे यह किसी भी प्रतियोगिता में किसी भारतीय एथलीट के लिए अब तक की सबसे करीबी चूक बन गई. पीटी उषा रोमानिया की क्रिस्टीना कोजोकारू के बाद चौथे स्थान पर रहीं.
एथेंस ओलिंपिक 2004: दिग्गज लिएंडर पेस और महेश भूपति की टेनिस में भारत की सबसे महान युगल जोड़ी एथेंस ओलिंपिक में मैंस डबल्स में मेडल जीतने से चूक गई थी. पेस और भूपति क्रोएशिया के मारियो एनसिक और इवान ल्युबिसिक से मैराथन मैच में 6-7, 6-4, 14-16 से हारकर ब्रॉन्ज मेडल जीतने से चूक गए थे. इस जोड़ी को इससे पहले सेमीफाइनल में निकोलस किफर और रेनर शटलर की जर्मनी की जोड़ी से सीधे सेटों में 2-6, 3-6 से हार का सामना करना पड़ा था.
एथेंस ओलिंपिक में ही कुंजारानी देवी महिलाओं की 48 किग्रा वेटलिफ्टिंग में चौथे स्थान पर रहीं थी. कुंजारानी 190 किग्रा के कुल प्रयास के साथ ब्रॉन्ज मेडलिस्ट थाईलैंड की एरी विराथावोर्न से 10 किग्रा पीछे रही.
लंदन ओलिंपिक, 2012: निशानेबाज जॉयदीप करमाकर लंदन ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने से चूक गए थे. वो 50 मीटर राइफल प्रोन इवेंट के क्वालिफिकेशन राउंड में 7वें स्थान पर रहे थे और फाइनल में ब्रॉन्ज मेडलिस्ट से सिर्फ 1.9 अंक पीछे रहे.
रियो ओलिंपिक, 2016: दीपा करमाकर ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बनीं थी. महिलाओं की वॉल्ट स्पर्धा के फाइनल में जगह बनाने के बाद वो महज 0.150 अंकों से ब्रॉन्ज मेडल जीतने से चूक गईं. उन्होंने 15.066 के स्कोर के साथ चौथा स्थान हासिल किया.
इसी ओलिंपिक में अभिनव बिंद्रा भी मामूली अंतर से पदक जीतने से चूक गये. बीजिंग ओलिंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट बिंद्रा रियो में मामूली अंतर से ब्रॉन्ज से चूक गए थे.
बोपन्ना को 2004 के बाद एक बार फिर से ओलिंपिक पदक जीतने से दूर रहने की निराशा का सामना करना पड़ा, जब उनकी और सानिया मिर्जा की भारतीय मिश्रित युगल टेनिस जोड़ी को सेमीफाइनल और फिर कांस्य पदक मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा. इस जोड़ी को कांस्य पदक मैच में लुसी ह्रादेका और रादेक स्तेपानेक से हार का सामना करना पड़ा था.
टोक्यो ओलिंपिक, 2020: मास्को खेलों के चार दशक के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम को एक बार फिर करीब से पदक चूकने का दर्द झेलना पड़ा. भारतीय टीम तीन बार की ओलिंपिक चैंपियन ऑस्टेलिया को हराकर सेमीफाइनल में पहुंची, लेकिन उसे अंतिम चार मैच में अर्जेंटीना से 0-1 से हार का सामना करना पड़ा. रानी रामपाल की अगुआई वाली टीम को इसके बार कांस्य पदक मैच में ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ 3-2 की बढ़त को बरकरार नहीं रख सकी और 3-4 से हार गयी.
इसी ओलिंपिक में अदिति अशोक ऐतिहासिक पदक जीतने से चूक गयी. वर्ल्ड रैंकिंग में 200 वें स्थान पर काबिल इस खिलाड़ी ने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को टक्कर दी लेकिन बेहद मामूली अंतर से पदक नहीं जीत सकी.
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