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विनेश फोगाट ने चार पन्नों के जरिए जाहिर किया दिल का दर्द, देशवासियों से कहा- अगर हालात अलग होते तो...
विनेश फोगाट को पेरिस ओलिंपिक 2024 में 50 किलो कैटेगरी में 100 ग्राम वजन ज्यादा होने की वजह से अयोग्य घोषित किया गया था. उन्हें CAS से भी राहत नहीं मिली.
विनेश फोगाट का कहना है कि अगर हालात अलग होते तो वह 2032 तक कुश्ती खेलती क्योंकि उनमें काफी गुंजाइश बची है लेकिन अब उन्हें नहीं पता कि कैसा भविष्य होगा. इस स्टार पहलवान ने पेरिस ओलिंपिक 2024 में डिसक्वालीफाई होने के बाद संन्यास का ऐलान कर दिया था. विनेश फोगाट को 50 किलो कैटेगरी में 100 ग्राम वजन ज्यादा होने की वजह से अयोग्य घोषित किया गया था. उन्होंने इस फैसले को कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स में चुनौती दी थी लेकिन वहां पर भी फैसला खिलाफ गया. 16 अगस्त को विनेश ने एक इमोशनल सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अपना दर्द जाहिर किया. उन्होंने बचपन के सपनों से लेकर पिता की मृत्यु और मां की बीमारी के बीच मुसीबतों का सामना करते हुए आगे बढ़ने और पेरिस में दिल टूटने के पूरे सफर के बारे में लिखा.
विनेश ने पेरिस ओलिंपिक फाइनल के दिन की घटना का जिक्र करते हुए लिखा, ‘मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि हमने हार नहीं मानी, हमारे प्रयास नहीं रुके, लेकिन घड़ी रुक गई और समय ठीक नहीं था. मेरी किस्मत में शायद यही था. मेरी टीम, मेरे साथी भारतीयों और मेरे परिवार को ऐसा लगता है कि जिस लक्ष्य के लिए हम काम कर रहे थे और जिसे हासिल करने की हमने योजना बनाई थी वह अधूरा है. हमेशा कुछ न कुछ कमी रह सकती है और चीजें फिर कभी पहले जैसी नहीं हो सकती हैं. हो सकता है कि अलग-अलग परिस्थितियों में, मैं खुद को 2032 तक खेलते हुए देख सकूं, क्योंकि मेरे अंदर संघर्ष और कुश्ती हमेशा रहेगी. मैं भविष्यवाणी नहीं कर सकती कि भविष्य में मेरे लिए रखा है लेकिन मुझे इस यात्रा का इंतजार है. मुझे यकीन है कि मैं जिस चीज में विश्वास करती हूं और सही चीज के लिए हमेशा लड़ती रहूंगी.’
विनेश ने डॉ. पारदीवाला का बताया फरिश्ता
विनेश ने पेरिस ओलिंपिक में भारतीय दल के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर दिनशॉ पारदीवाला को सराहा और कहा कि वह किसी फरिश्ते की तरह है. पारदीवाला को विनेश के अयोग्य होने के बाद सोशल मीडिया के जरिए काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी. विनेश ने उनके बारे में कहा, ‘मेरे लिए और मुझे लगता है कि कई अन्य भारतीय एथलीटों के लिए वह सिर्फ एक डॉक्टर नहीं हैं, बल्कि भगवान द्वारा भेजे गए किसी देवदूत की तरह है. चोटों का सामना करने के बाद जब मैंने खुद पर विश्वास करना बंद कर दिया था, तो यह उनका विश्वास ही था जिसने मुझ में फिर से हौसला भर दिया.उन्होंने मेरा एक बार नहीं बल्कि तीन बार (दोनों घुटनों और एक कोहनी का) ऑपरेशन किया है और मुझे दिखाया है कि मानव शरीर कितना लचीला हो सकता है. अपने काम और भारतीय खेलों के प्रति उनका समर्पण और ईमानदारी ऐसी चीज है जिस पर भगवान सहित किसी को भी संदेह नहीं होगा. मैं उनके काम और समर्पण के लिए हमेशा उनका और उनकी पूरी टीम का आभारी हूं.’
विनेश ने किससे सीखा संघर्षों का सामना करना
विनेश ने बताया कि कम उम्र में उनके पिता का निधन हो गया और मां कैंसर से जूझ रही थीं. इस दौरान अस्तित्व की लड़ाई ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया. उन्होंने लिखा, ‘‘…अस्तित्व ने मुझे बहुत कुछ सिखाया. अपनी मां की कठिनाइयों को देखकर, कभी हार न मानने वाला रवैया और लड़ने का जज्बा ही मुझे वैसा बनाता है जैसा मैं हूं. उन्होंने मुझे उस चीज के लिए लड़ना सिखाया जो मेरा हक है. जब भी मैं साहस के बारे में सोचती हूं मैं उसके बारे में सोचती हूं और यही साहस है जो मुझे परिणाम के बारे में सोचे बिना हर लड़ाई लड़ने में मदद करता है.’
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