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सड़क हादसे में पिता को खोया, खेल छोड़ने की कगार पर पहुंचा, अब पेरिस ओलिंपिक में मेडल का रंग बदलने को तैयार स्‍टार मिडफील्‍डर

भारतीय मिडफील्‍डर राजकुमार पाल वाराणसी से करीब 40 किलोमीटर दूर गाजीपुर के जिस गांव से आते हैं, उस गांव में 400 से ज्‍यादा प्‍लेयर्स ने हॉकी के जरिए नौकरी हासिल की है.

राजकुमार पाल साल 2020 में भारतीय टीम के लिए डेब्‍यू किया था
authorकिरण सिंह
Thu, 18 Jul 02:39 PM

पेरिस ओलिंपिक में पूरे देश की नजर हॉकी टीम पर होगी. हर कोई मेडल का रंग बदलने की उम्‍मीद कर रहा है. टोक्‍यो ओलिंपिक की ब्रॉन्‍ज मेडलिस्‍ट भारतीय हॉकी टीम को हर कोई ओलिंपिक चैंपियन बनते हुए देखना चाहता है. स्‍टार मिडफील्‍डर राजकुमार पाल का टारगेट भी बस मेडल के रंग को बदलना है. वो अपने गांव को ओलिंपिक विजेता का गांव बनाना चाहते हैं. 

 

राजकुमार वाराणसी से करीब 40 किलोमीटर दूर गाजीपुर के करीब तीन हजार की आबादी वाले करमपुर गांव से हैं, जहां 400 से ज्‍यादा खिलाड़ी हॉकी के जरिए नौकरी हासिल कर चुके हैं. ओलिंपिक खेलने का सपना इस गांव के सैंकड़ों प्‍लेयर्स ने भी देखा था, मगर उसे पूरा करने का मौका राजकुमार को मिला. राजकुमार के दोनों भाई जोखन और राजू भी हॉकी के खिलाड़ी रह चुके हैं. अपने पहले ओलिंपिक के लिये रवाना होने से पहले राजकुमार ने भाषा को दिये इंटरव्यू में कहा- 


हम तीनों भाई हॉकी खेलते हैं. बीच वाले भाई भारतीय टीम के शिविर में रह चुके हैं और बड़े भाई राष्ट्रीय स्तर पर खेले हैं. दोनों भारत के लिये नहीं खेल सके और अब एक रेलवे से और एक सेना से खेलते हैं.

 

सड़क हादसे में पिता को खोया

 

10 साल की उम्र में हाथ में हॉकी स्टिक थामने वाले राजकुमार ने 2018 में बेल्जियम में पांच देशों के अंडर 23 टूर्नामेंट में खेला और 2020 में भारतीय टीम में डेब्‍यू किया. अब तक 53 इंटरनेशनल मैच खेल चुके राजकुमार ने साल 2011 में एक सड़क हादसे में अपने पिता कल्पनाथ को खो दिया था. वो दौर उनके लिए काफी मुश्किल था. उस वक्‍त उन्‍हें लगा था कि वो आगे नहीं खेल पाएंगे. राजकुमार ने कहा-

 

वो दो साल परिवार के लिये बहुत कठिन थे और मुझे लगा था कि अब आगे नहीं खेल पाऊंगा, लेकिन मेरे परिवार ने हार नहीं मानी. टोक्यो ओलिंपिक में मेरा चयन नहीं हो पाया था, लेकिन बिना निराश हुए मेहनत की तो अब पेरिस जा रहा हूं. जब पेरिस में मैदान पर उतरूंगा तो यह सब कुर्बानियां याद रखूंगा.


उन्होंने बताया कि जब उन्‍हें ओलिंपिक टीम में अपने सेलेक्‍शन की खबर मिली थी तो संघर्ष को याद करके उनके आंसू निकल गए थे और उन्‍हें उनके पापा की बहुत याद आई थी. घर पर फोन किया तो उनकी मां भी रोने लगी थी. उन्‍होंने कहा कि वो बड़ी टीमों के खिलाफ पहले भी खेले हैं तो उतना दबाव नहीं है, लेकिन पहला ओलिंपिक होने से थोड़ा नर्वस होते हैं तो पीआर श्रीजेश, कप्तान हरमनप्रीत सिंह, मनप्रीत सिंह जैसे सीनियर खिलाड़ियों से बात करते हैं, जिससे उन्‍हें काफी  मदद मिलती है.

 

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