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हॉकी के इतिहास में सबसे बड़ी जीत भारत के नाम दर्ज, जानिए कब और किस टीम पर किए थे 24 गोल

साल 1929 में वॉल स्ट्रीट क्रैश हो गया था.

हॉकी के इतिहास में सबसे बड़ी जीत भारत के नाम दर्ज, जानिए कब और किस टीम पर किए थे 24 गोल
SportsTak - Wed, 11 Jan 04:22 PM

साल 1929 में वॉल स्ट्रीट क्रैश हो गया था. वॉल स्ट्रीट को अमेरिका का वित्तीय सेंटर कहा जाता है जहां स्टॉक एक्सचेंज, वित्तीय कंपनियां और हजारों लोगों के पैसे लगते हैं. इसे दुनिया का सबसे बड़ा इकॉनमी हब भी कहा जाता है. लेकिन ठीक तीन साल बाद जब 1932 ओलिंपिक लॉस एंजेलिस में लौटा तब ये कई लोगों के लिए उदासी भी लेकर आया. भारत इस साल वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहा था और भारतीय हॉकी टीम समर गेम्स से अपना नाम वापस लेने की कगार पर थी. 1928 ओलिंपिक में गोल्ड जीतने के बाद भारत को इस खेल से प्यार हो गया था. ऐसे में आगे के टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए टीम ने नेशनल ट्रायल्स की शुरुआत की जिससे बेस्ट टीम को चुना जा सके.

 

पैसे जुटाने के लिए लेना पड़ा था लोन

भारत ने अपनी टीम बनाई और 11 अगस्त 1932 में टीम ने अपना लगातार दूसरा ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीता. इस मैच की सबसे खास बात ये थी कि भारत ने सबसे बड़ी जीत हासिल की थी जो अमेरिका पर 24-1 की थी. लेजेंड्री ध्यानचंद के अलावा भारतीय हॉकी फेडरेशन ने उनके छोटे भाई रूप सिंह को भी चुना. 1928 टीम के सदस्य एरिक पिनिगर, रिचर्ड एलन और लेस्ली हैमंड भी साल 1932 ओलिंपिक टीम में शामिल किए गए. लाल सिंह बोखारी को यहां भारतीय हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया था. टीम तो बन चुकी थी लेकिन सबसे बड़ा चैलेंज यहां पैसे जुटाना था जिससे टीम को ओलिंपिक गेम्स के लिए लॉस एंजेलिस भेजा जा सके.

 

भारतीय हॉकी फेडरेशन इसके बाद रॉयल फैमिली और गवर्नर के पास पहुंचा और लोन लिया. फेडरेशन ने इसके बाद कई एग्जीबिशन मुकाबलों का आयोजन करवाया. और टीम ने इन मुकाबलों को बॉम्बे, बैंगलोर, मद्रास और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में खेला. यही नहीं 42 दिन के अपने समुद्री सफर के दौरान भारतीय टीम पैसे जुटाने के लिए हर पोर्ट पर रुकी और मुकाबले खेले. हालांकि बाद में इन पैसों को लेकर खिलाड़ियों के बीच बवाल भी हुआ. लेकिन जैसे तैसे टीम वहां पहुंची.

 

इस तरह जीता गोल्ड मेडल
भारतीय टीम 1932 समर ओलिंपिक गेम्स में हिस्सा लेने के लिए लॉस एंजेलिस तो पहुंच गई लेकिन टीम इंडिया की तरह बाकी टीमों में वो हिम्मत नहीं दिखी. इस टूर्नामेंट के लिए सिर्फ 3 टीमों ने हामी भरी थी. एक थी भारतीय टीम, दूसरी जापान और तीसरी गेम्स को होस्ट करने वाली अमेरिका. इससे एक बात तो साफ हो गया था कि मेडल तीनों टीमों को मिलना तय था.

 

जब अमेरिका को 24 गोल से रौंदा
भारत का पहला मुकाबला जापान के साथ और जापान को कुछ समय के भीतर ही ये एहसास हो गया कि टीम कितनी मजबूत थी. ध्यानचंद ने 4 गोल जड़े. रूप सिंह और स्ट्राइकर गुरमीत सिंह ने हैट्रिक जड़ जापान को 11-1 से रौंदा. अमेरिका के खिलाफ अपने अगले मुकाबले में भारतीय टीम ने अपनी पूरी टीम को ही रोटेट कर दिया. इसका नतीजा ये रहा कि, भारत ने हॉकी इतिहास की अपनी सबसे बड़ी जीत हासिल की. भारत ने अमेरिका को 24-1 से रौंदा जो आज भी एक बड़ा रिकॉर्ड है. इस बार युवा रूप सिंह ने 10 गोल, ध्यानचंद ने 2, गुरमीत सिंह कुल्लर ने 5 और एरिक पिनिगर ने एक गोल किया था. भारतीय खिलाड़ी इस कदर अमेरिका पर हावी थे कि अमेरिका की टीम सिर्फ एक गोल ही कर पाई.

 

24 गोल की लीड के साथ भारतीय हॉकी टीम के डिफेंडर्स ने अमेरिकी टीम के खिलाड़ियों को गोल करने की खुली छूट दे दी. लेकिन इस बीच भारतीय टीम को ये एहसास नहीं हुआ कि, गोलकीपर रिचर्ड एलेन यहां ऑटोग्राफ देने में व्यस्त थे और तभी अमेरिका ने एक गोल कर दिया. जापान ने इससे पहले अमेरिका को 9-2 से हराया था तो टीम को सिल्वर मेडल मिला. जबकि भारत की झोली में गोल्ड मेडल गया. 
 

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