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आदिवासी खिलाड़ी की जबरदस्त कहानी, झूठ बोलकर सीखा क्रिकेट, रोज 80 किलोमीटर किया सफर, बाढ़ में घर बहा, अब दिल्ली कैपिटल्स ने खरीदा

वीमेंस प्रीमियर लीग 2023 (Women's Premier League) ने कई ऐसे खिलाड़ियों के लिए आगे के दरवाजे खोले हैं जो काफी संघर्ष के बाद इस खेल में दाखिल हुए हैं.

आदिवासी खिलाड़ी की जबरदस्त कहानी, झूठ बोलकर सीखा क्रिकेट, रोज 80 किलोमीटर किया सफर, बाढ़ में घर बहा, अब दिल्ली कैपिटल्स ने खरीदा
authorSportsTak
Thu, 09 Mar 05:27 PM

वीमेंस प्रीमियर लीग 2023 (Women's Premier League) ने कई ऐसे खिलाड़ियों के लिए आगे के दरवाजे खोले हैं जो काफी संघर्ष के बाद इस खेल में दाखिल हुए हैं. ऐसा ही एक नाम है मीनू मणि (Minnu Mani). वह केरल से आती हैं और ऑलराउंडर हैं. मीनू मणि केरल की इकलौती क्रिकेटर हैं जो डब्ल्यूपीएल में खेल रही हैं. उन्हें 30 लाख रुपय में दिल्ली कैपिटल्स ने चुना. मीनू आदिवासी समुदाय से आती हैं और केरल के वायनाड जिले के मननथवडी की रहने वाली हैं.जब वह आठ साल की थीं तब उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया और फिर पलटकर नहीं देखा. वह कोचिंग के लिए रोजाना 80 किलोमीटर का सफर तय करती और सप्ताह में छह दिन उनकी यही दिनचर्या होती. कुछ साल पहले बाढ़ में उनका नया बन रहा मकान बह गया था तब क्रिकेट के जरिए ही दोबारा घर बनाया.

 

मीनू ने डब्ल्यूपीएल में खेलने के बारे में पीटीआई को बताया, 'मेरे लिए माता-पिता को गर्व कराने का यह बड़ा मौका है. जब मैंने खेलना शुरू किया तब मुझे परिवार से कोई सपोर्ट नहीं मिला. वे कहते थे कि यह आदमियों का खेल है, तुम नहीं खेल सकती, तुम ऐसा नहीं कर सकती. लेकिन मैंने आठवीं क्लास में क्रिकेट कोचिंग शुरू की तब में ट्रेनिंग जाने के लिए झूठ बोला करती थी क्योंकि उन्हें यह पसंद नहीं था. मैं अक्सर झूठा बोला करती थी कि मेरी स्कूल में एक्स्ट्रा क्लास है.'

 

42 किलोमीटर दूर था मैदान


मीनू बाएं हाथ की बल्लेबाज और दाएं हाथ की ऑफ स्पिनर हैं. उन्होंने अपने संघर्ष के बारे में कहा, 'मेरे घर से मैदान 42 किलोमीटर दूर था. वहां तक पहुंचने में डेढ़ घंटा लगता था और मुझे चार बस बदलनी पड़ती थी. इससे काफी थकान होती ती. मैं सुबह चार बजे उठती और मां के साथ दिन का खाना बनाती. मैं सुबह नौ बजे मैदान पहुंचने के लिए सुबह पौने सात बजे घर से निकल जाती. मैं एक-दो बजे तक ट्रेनिंग करती और फिर घर आती. रोज आना-जाना मुश्किल होता था और केवल रविवार को ही ब्रेक ले पाती थी.'

 

माता-पिता ने पहले किया विरोध फिर माने


मीनू का कहना है कि उसके माता-पिता पहले साथ नहीं थे लेकिन बाद में वे मान गए. उन्होंने क्रिकेट ट्रेनिंग के लिए लोन भी लिया. बकौल मीनू, 'रोजाना सफर के लिए पैसों की तंगी झेलनी पड़ती थी. माता-पिता के पास पक्की नौकरी नहीं थी. पिता कूली का काम करते थे तो मां गृहणी थी. पैसों की कमी रहती थी. लेकिन वे किसी न किसी तरह मेरी प्रैक्टिस के लिए पैसे जुटा लेते थे. अब इसका बंदोबस्त मेरी मैच फीस वगैरह से हो जाता है. निचले दर्जे में कामयाबी के बाद उन्हें लगा कि क्रिकेट मेरा जुनून है. फिर उन्होंने मेरा साथ दिया. पहले वे पढ़ाई करने पर जोर दे थे लेकिन अब अच्छे से प्रैक्टिस के लिए कहते हैं.'

 

बाढ़ में बह गया अधबना घर


मीनू ने हाल ही में हुई वीमेंस वनडे टूर्नामेंट में सर्वाधिक रन बनाए. 2018-19 की बाढ़ के दौरान उनका आधा बना मकान बह गया था. लेकिन क्रिकेट के जरिए ही परिवार को सहारा दिया. इस बारे में उन्होंने कहा, 'मैं इंडिया ए के लिए खेल रही थी. मेरा घर जंगल में पहाड़ों से घिरा है. हमने नए घर के लिए नींव लगा दी थी. जब बाढ़ आई तो इसके साथ काफी मलबा भी आया. इससे काफी नुकसान हुआ. लेकिन मुझे तब मैच फीस से पांच लाख रुपये मिले थे उससे दोबारा घर बनाया.'

 

मीनू का कहना है कि अब वह पैसों की तंगी को दूर करना चाहती है. उनका कहना है, 'मैं उनकी मदद करना चाहती हूं. उन्होंने काफी मुश्किल भरे दिन देखे हैं. वे मेरी ट्रेनिंग के लिए रिश्तेदारों से पैसे मांगा करते थे. इसलिए सबसे पहले मैं पैसों की समस्या दूर करना चाहती हूं. फिर एक दोपहिया गाड़ी लेनी है.'

 

मीनू ने माना कि यहां तक पहुंचने के सफर में उन्हें सपने को छोड़ देने का ख्याल भी आया. उन्होंने कहा, 'मुझे लगताा है कि हर किसी के जीवन में ऐसा होता है. हमें जब इच्छानुसार नतीजे नहीं मिलते हैं और हम नाकाम होते हैं तब मैं सोचा करती थी मैं आगे नहीं खेल पाऊंगी. मैंने ग्रेजुएशन छोड़ दी थी क्योंकि परीक्षा में नहीं बैठ पा रही थी. फिर क्रिकेट में भी कुछ अच्छा नहीं हो रहा था. पर तब मैंने सोचा कि क्रिकेट खेलना क्यों शुरू किया था. मेरा सपना भारत के लिए खेलना था.'

 

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