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जयदेव उनादकट ने 12 साल बाद टेस्ट खेलने का बताया अनुभव, कुलदीप की जगह लेने पर भी दिया जवाब
12 बरस में पहली बार भारत के लिए टेस्ट खेल रहे जयदेव उनादकट ने शानदार प्रदर्शन करके अपना ‘वादा’ निभाया.
12 बरस में पहली बार भारत के लिए टेस्ट खेल रहे जयदेव उनादकट ने शानदार प्रदर्शन करके अपना ‘वादा’ निभाया. टेस्ट क्रिकेट खेलने के लिये वह किस कदर तरस रहे हैं, इसकी बानगी जनवरी में देखने को मिली जब उनका एक ट्वीट वायरल हो गया था. उन्होंने लिखा था, ‘डियर रेड बॉल, मुझे एक मौका और दे दो प्लीज. तुम्हें फख्र होगा, ये मेरा वादा है.’ उनादकट ने बांग्लादेश से लौटने के बाद पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘हर किसी को लगा कि मैं राष्ट्रीय टीम में वापसी की बात कर रहा हूं. मुझे लाल गेंद से क्रिकेट खेलना था क्योंकि कोरोना के कारण रणजी ट्रॉफी फिर स्थगित हो गई थी.’
उनादकट ने आखिरी बार 2010 में टेस्ट खेला था जिस टीम में सचिन तेंदुलकर और मौजूदा मुख्य कोच राहुल द्रविड़ भी थे. उन्होंने दूसरा टेस्ट बांग्लादेश के खिलाफ अब खेला चूंकि मोहम्मद शमी पूरी तरह से फिट नहीं थे. 2020 के रणजी सीजन में रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन के बाद भी वे सेलेक्शन के रडार पर नहीं थे. उन्हें टीम इंडिया में जिस तरह मौका मिला उसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी. वह बांग्लादेश दौरे पर गई इंडिया ए टीम का हिस्सा भी नहीं थे.
कुलदीप की जगह लेने पर क्या बोले उनादकट
वीजा मिलने में देरी के कारण वह पहला टेस्ट शुरू होने के बाद ही बांग्लादेश पहुंचे लेकिन दूसरे टेस्ट में उन्हें कुलदीप यादव की जगह उतारा गया. पहले टेस्ट में आठ विकेट लेने वाले कुलदीप को बाहर करने से काफी विवाद खड़ा हुआ. उन्होंने जाकिर हसन के रूप में पहला टेस्ट विकेट लिया. उन्होंने कहा, ‘यह मेरे करियर की सबसे सुनहरी यादों में से एक होगा. टेस्ट विकेट लेने की कल्पना मैं हजार बार कर चुका था.’ यह पूछने पर कि क्या कुलदीप की जगह लेने से कोई दबाव महसूस हुआ, उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल नहीं. जब आप अपेक्षा नहीं करते और चीजें हो जाती है तो उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिये. मैं सिर्फ अपना योगदान देना चाहता था. अगर विकेट नहीं मिलता है तो फिर प्रेशर बनाया जाए.’
घरेलू क्रिकेट खेलने का मिला फायदा
इस मुकाबले में उनादकट ने तीन विकेट लिए लेकिन वापसी वाले टेस्ट में उनका प्रभाव काफी गहरा रहा. उन्होंने राजकोट की फ्लैट विकेट पिच पर बरसों के अनुभव का फायदा लिया. उन्होंने कहा, 'घरेलू क्रिकेट खेलने से मुझे काफी फायदा मिला. जब विकेट नहीं मिल रहे होते हैं तब एक बॉलर के तौर पर आपके पास हमेशा एक भूमिका होती है. आप प्रेशर बना सकते हैं और बल्लेबाज को भ्रम में डाल सकते हैं जिससे बाकी गेंदबाजों को फायदा मिले.'
रणजी ट्रॉफी में लगातार कमाल करने के बाद भी भारतीय टीम में नहीं चुने जाने पर उनादकट निराश होते थे लेकिन वे घरेलू क्रिकेट में एक चैंपियन टीम बनाने में भी लगे हुए थे. उन्होंने बताया, मुझे हमेशा लगता था कि एक और मौका मिलेगा. मुझे नहीं पता था कि कितना ईमानदार रहा जाए क्योंकि पिछले तीन-चार साल में भारतीय गेंदबाज अच्छा खेल दिखा रहे थे. मैं उन्हें देखकर प्रेरित होता था.
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