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विराट कोहली- रवि शास्त्री के जरिए लाए गए नियम को BCCI ने हटाया, अब टीम इंडिया में इस तरह नहीं चुने जाएंगे खिलाड़ी

भारतीय खिलाड़ियों को पहले टीम इंडिया के भीतर चुने जाने के लिए खिलाड़ियों को यो- यो टेस्ट देना होता था. लेकिन अब टीम मैनेजमेंट इसे खत्म करने जा रही है.

ट्रेनिंग के दौरान विराट कोहली और रवि शासत्री
authorNeeraj Singh
Tue, 02 Jul 04:15 PM

भारतीय टीम ने जैसे ही टी20 वर्ल्ड कप 2024 खिताब पर कब्जा किया बीसीसीआई ने टीम के भीतर एक बड़ा बदलाव कर दिया है.  पिछले 5 सालों से टीम इंडिया के भीतर खिलाड़ियों का चयन फिटनेस टेस्ट के दम पर होता है. लेकिन अब टीम मैनेजेंट ने फैसला किया है कि किसी भी खिलाड़ी का चयन टीम के भीतर फिटनेस टेस्ट के दम पर नहीं होगा. साल 2019 वनडे वर्ल्ड कप के बाद जसप्रीत बुमराह और हार्दिक पंड्या चोटिल हो गए थे. इसके बाद बीसीसीआई की मेडिकल टीम ने नेशनल क्रिकेट एकेडमी में कॉन्ट्रैक्टेड खिलाड़ियों के लिए नियम बदल दिया था. जिसमें सभी को अपनी फिटनेस साबित करने के लिए टेस्ट देना था.

 

फिटनेस टेस्ट अब जरूरी नहीं


टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार एनसीए डॉक्यूमेंट में अब साफ कर दिया गया है कि खिलाड़ियों के सेलेक्शन के लिए फिटनेस टेस्ट देना अब जरूरी नहीं होगा. विराट कोहली और रवि शास्त्री के कार्यकाल के दौरान टीम मैनेजमेंट ने सभी खिलाड़ियों के लिए यो- यो टेस्ट जरूरी कर दिया था. इस टेस्ट की मदद से खिलाड़ियों की फिटनेस को टेस्ट किया जाता था. एनसीए की टीम में फिजियो और स्ट्रेंथ कंडीशनिंग कोच होते हैं. इन्होंने तीन तरह के प्रोग्राम बनाए हैं जिसमें नेशनल फिटनेस टेस्टिंग क्राइटेरिया, परफॉर्मेंस टेस्टिंग बैटरी और प्रिवेंशन टेस्टिंग बैटरी शामिल है. NFTC को हर 12-16 हफ्तों के बीच किया जाता है. वहीं परफॉर्मेंस टेस्टिंग को हर 6 हफ्तें में किया जाता है. जबकि प्रिवेंशन टेस्टिंग को हर दो हफ्ते में किया जाता है.

 

NFTC में 10 मीटर का स्प्रिंट टेस्ट, 20 मीटर का स्प्रिंट टेस्ट, लॉन्ग जंप, यो यो टेस्ट और डेक्सा टेस्ट होता है जिससे फैट पर्सेंटेज नापा जाता है. ऐसे अब इन सभी को एनसीए के डॉक्यूमेंट में फिटनेस के तौर पर शामिल किया गया न की सेलेक्शन प्रोसेस के तौर पर. बता दें कि यो यो और 20 मीटर स्प्रिंट इमर्जिंग खिलाड़ी और सेंट्रल कॉन्ट्रैक्टेड खिलाड़ियों के लिए होता है. यो यो मार्क कॉन्ट्रैक्टेड खिलाड़ियों के लिए 16.5 होता है जबकि इमर्जिंग खिलाड़ियों के लिए ये स्कोर 16.7 होता है.

 

बीसीसीआई के एक सूत्र ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि एक बार अगर कोई खिलाड़ी सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट के भीतर शामिल हो जाता है तो उसे अपनी फिटनेस शामिल करनी होती है. वर्तमान में जितना क्रिकेट खेला जा रहा है उससे कॉन्ट्रैक्टेड खिलाड़ियों को अपनी फिटनेस टेस्ट साबित करने की जरूरत नहीं है. ऐसे में अब सारा फोकस खिलाड़ियों को चोटिल होने से बचाना है. ऐसे में इसका पूरा श्रेय सोहम देसाई, योगेश परमार, थुलसी और कमलेश जैन को जाता है जिन्होंने खिलाड़ियों को साल 2023 वनडे वर्ल्ड कप और टी20 वर्ल्ड के दौरान पूरी तरह फिट रखा.

 

वहीं प्रिवेंशन टेस्ट भी खिलाड़ियों के लिए काफी जरूरी है. इसमें स्क्वॉट, वॉकिंग लंजेस, ग्लूट ब्रिज और बॉल थ्रो शामिल है. इससे पॉस्चर और ताकत को टेस्ट किया जाता है. वहीं अगर कोई चोटिल हो जाता है तो आखिरी ऑप्शन उस खिलाड़ी के लिए सर्जरी होती है. बता दें कि खिलाड़ी कई तरह की डिवाइस भी पहनते हैं जिसमें वूप शामिल है. इससे सभी के बॉडी के डेटा को कलेक्ट किया जाता है और फिर उनका प्रदर्शन देखा जाता है.
 

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